पिछले कुछ दिनों से दिल्ली का मिज़ाज बदला सा नज़र आ रहा है। वैसे जो ना बदले वो दिल्ली कहाँ! बादशाह बदले, इमारते बदली, पुरानी से दिल्ली नई भी हो गयी। मेरे ख़्याल से यहाँ का मौसम घड़ी दर घड़ी करवटें लेता है। अब मई के महीने में सावन का एहसास तो यहीं से मिल सकता है। अभी ख़बर आई कि मानसून देर से आएगी। अखबार वालो ने लिख रखा है। पर यहाँ तो बारिस सुबहो-शाम हो रही है। मौसमी पढ़ने-लिखने वालों के लिये आफत ये है साहब कि अभी परीक्षाओं का ताबड़तोड़ दौर चल रहा है। अब भला सुबह से लेकर रात तक, विद्यार्थियों का हुज़ूम पुस्तकालय के चक्कर काट रहा है। बीच सेमेस्टर में पुस्कालय ने बड़ी आस भरी नज़रों से उन्हें याद किया था। तब नहीं दिखे। अभी साहब बिना कुर्सी के भी पढ़ने को तैयार हैं। वो भी ऐसे मौसम में। चुनावी मौसम भी है साहब। हर कोई अपनी उपयोगिता को सिद्ध करने में लगा है। लोकतंत्र का पर्व ट्यूटर के हैंडल पे एक्टिव हो चुका है। मीडिया वालों ने अपने अपने चैनलों पे इंटरव्यू की होड़ लगा रखी है। कुछ यूट्यूब पे इंटरव्यू दिए जा रहा है, और तो और कुछ लोग इंटरव्यू की बखिया उधेड़नेे में लगे हुए हैं। साहब टी आर पी का कम्पटीश...
There is something in everything and everything in something.