आज बहुत घड़ी बाद लिखने की तमन्ना मुझे खिंच लाया उस पथ पे
जहाँ जानने वालों की भीड़ तो है
पर समझने वाले शायद ही मिलते हैं
ऐसे पथ पे जहाँ चारो और शोर शराबे में
इंसान अपने खामोशी को ढूढ़ रहा है
खामोशी की क़ीमत हर उस शख्स को पता है
जो शोरगुल से सने वीराने में रहता है
हर जगह भीड़ हो जाने की जल्दी है
मानो हर एक शख्स को ख़ुद से दूर भाग जाने की बेचैनी हो
अकेलपन की बेबसी में गाँव के बुजुर्ग राह देख रहे हैं
कि जिसे बचपन के मासूमियत में बढ़ते देखा था
वो पेड़ कब बूढ़े सर का छाया बनेगा
Comments
Post a Comment