यादें कई रंगों में सनी
यादें वो मासूम बचपन की
जब कुछ पन्ने किताबों के
जब पहली बार निहारता रहा था
वो काबुलीवाला चाचा कुछ कानों में कह गया था
और बाबा भारती खड़ग सिंह का वार्तालाप
जो विश्वास की कसौटी को ऊँचा कर गया था
और फिर तितलियों को मासूमियत की निगाह से देख जाना
सुबह की पहली किरण का पेशानी पे तिलक लगा जाना
सरसो के फूलों के चादर में लिपटी हुई
उन खेतों में छिप जाना
वो शाम जब नुक़्क़ा-छिप्पी में खो जाना
त्योहार भी क्या त्योहार हुआ करते थे
आज भी वो सब कुछ आँखों के सामने है
पर उसे महसूस करने वाला मासूमियत
कहीं दूर जा चुका है
इतनी दूर कि शायद उसकी आवाजें
बचकानी सी लगती है
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