अतीत से बुना धागा कुछ ऐसा है
कितनी भी तोड़नी की कोशिश करो
उसके छोटे-छोटे टुकड़े
वर्तमान से जुड़ जाते हैं
अतीत की बनाई गाँठ में उलझकर
ना जाने कितने झगड़े-फ़साद हुए
पर इन्सान की फ़ितरत तो देखिए
हर पल अपने इतिहास को लिए घूमता है
यादें ही हैं कोई पाषाण में उकेरी तस्वीर नहीं
जिसे मिटाने के लिए कई बार पत्थर का अस्तित्व तक मिटाना होता है
अतीत से भागने के बजाय
एक समझौता कर लो आज
कि हम-तुम रहेंगे एक-दूसरे का आइना बन कर
मेरे अतीत के हर-एक दाग को
कुछ इस कदर उभारना
कि मुझे मेरे होंने का गुमां ना हो
जैसे सूरज चाँद की रॉशनी बन जाता है
और उसके अतीत के खुरदुरेपन को
इस तरह उभारता है
मानो कोई सच्चा प्रेमी हो।
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