Clouds overshadowing Their colours are too mystical Their fragrance is making one indifferent About the suffering in the world Their shadow is hiding The deceptive dance of ego The dialectics of I and You Erases each-other and make them alive For witnessing the suffering Who has defeated once for all The mara, the trishna, the quest of fulfillment? Show me that moment When the dazzling light of Sun Has made the mirrage to disappear Permanently, eternally Show me that spirit Overpowering the quest Of being and becoming
वो अल्हड़ सा मनमौजी समय था जब चढ़ते हुए सूरज के आँगन में हम क्रिकेट खेला करते थे। वो गाँव में दशहरे का समय जब छोटे-छोटे बच्चे मेला जाया करते थे मेले से लाये गए खिलौने को संजो कर रखा करते थे। वो शाम में रेडियो के आसपास बैठे गाँव के बुजुर्ग राजनीति पे छीटा-कसी किया करते थे। पूरे गाँव में टेलीविज़न का एक सेट होता था जिसके एंटीने के पेचाकसी में पूरा धारवाहिक गुजर जाता था। जबसे विकाश की नई बयार बही है गाँव आज शहर की नकल कर रहा है परिवार की जड़ें जमीं से कुछ इस क़दर उखड़ी है कि आज पेड़ की हर डाली एक-दूसरे से हिसाब मांग रही है आज के हम बिखरे पत्ते अपनी जड़ों से दूर आसमां की उड़ान भरते हैं आसमां की ऊँचाई में भटक कर जब घर को लौटते हैं तो घर हमसे ये सवाल पूछती है कि कितनी घड़ी के लिए आये हो जब तुम घर छोड़ कर जाओगे क्या तुम्हें याद होगा वो चेहरा जो इस आस में तुम्हें विदा किया था कि शायद एक मुलाकात फ़िर से होगी कुछ बातें फिऱ से होगी। पर वो बातें अधूरी रह गई थी इतनी अधूरी की उसे मुकम्मल करने को मैं दरबदर भटकता हूँ। इस शहर के हर एक बाग बगीचों में अपने गांव को खोजता रहता हूँ पर एक गांव से शहर का सफर तो आसान है