आदत नहीं हमें कि चंद सिक्कों पे लूट जाना है
ज़मीर के सौदागर हमने पग-पग पे देखे हैं
उल्फ़त की आँधी हो या बेचैनी का शैलाब
जो राह पकड़ के चल पड़ा
उसे कश्ती मिल ही जाना है
देखे है हमनें बड़े पत्थर दिल वाले
जो दिल को छू जाए
वही जीवन को जाना है
जो बात तोड़-जोड़ कर निकले
उन्हीं बांतों में जमाना है
अदा जब अश्क़ बन जाए
सदायें ख़ुद से ख़ुदा हो जाना है
ये कैसी नादानी है
कि खिलौनों को खिलौने का शौक है
तेरा गुरुर एक बुलबुले सा है
कुछ पल में ही मिट जाना है
तूने मन के लिबास पे
जो कलिखें पोत रखी है
उस मलिन मन के भीतर
वो बच्चा जो शांत सा बैठा है
क्या तुमने कभी उसे पहचाना है?
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