पिछले कुछ दिनों से झम झम करती हुई मूसलाधार बारिश हो रही है,
कुछ पंखों में हौसला बढ़ा है, भींग रहे हैं, फिर ठहर के थोड़ा, बारिश की बूंदों ने उन्हें बाँध रखा है।
पत्तों की सरसराहट हो या फिर उनसे गिरते मोती से झिलमिल बारिश की बूंदे, जीवन सा कुछ हो गया है।
सूरज की तपन से झुलसी हुई मुरझायी सी धरती ने अपनी बाहें फैला रखी है, और ये बादल भी मंडराते हुए, गगन से अपने आशियाने कि तलाश में धरा को आलिंगित करता है मानो इश्क़ सा हो गया है।
ऐसा लगता है कि ये बारिश भी समर्पण को जीता है,
सच में, समर्पण ही जीवन है, ख़ुद कि सीमाओं में क्या रखा है, मोह और मृत्यु का भय!
जीवन तो अपनी पहचान मिटाने में है, ख़ुद को ख़ुदा संग भुलाने में है!
बहुत सुंदर।
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