ज़िन्दगी जब चंद कागज के पन्नों में कैद हो,
कल्पनायें जब कुछ सिक्को में मौन हो,
रिश्ते जब अविस्वास के दामन में आँख मिचौली खेले,
दर्द जब अपना होते हुए भी पराया सा लगे,
समझ लो जीवन अब ज़िन्दा नहीं है।
भीड़ जब सही गलत को तौले,
न्याय जब स्वाद में बदल जाये,
प्रेम जब जिस्म में घर कर जाये,
ज़िन्दगी जब दौड़ सा हो जाये,
समझ लो जीवन अब ज़िन्दा नहीं है।
हिंसा जब वाणी को समर्पित हो,
समर्पण जब कमजोरी बन जाये,
बचपन जब मासूम ना रह जाये,
धर्म जब व्यवस्था सा हो जाये,
समझ लो जीवन अब ज़िन्दा नहीं है।
कल्पनायें जब कुछ सिक्को में मौन हो,
रिश्ते जब अविस्वास के दामन में आँख मिचौली खेले,
दर्द जब अपना होते हुए भी पराया सा लगे,
समझ लो जीवन अब ज़िन्दा नहीं है।
भीड़ जब सही गलत को तौले,
न्याय जब स्वाद में बदल जाये,
प्रेम जब जिस्म में घर कर जाये,
ज़िन्दगी जब दौड़ सा हो जाये,
समझ लो जीवन अब ज़िन्दा नहीं है।
हिंसा जब वाणी को समर्पित हो,
समर्पण जब कमजोरी बन जाये,
बचपन जब मासूम ना रह जाये,
धर्म जब व्यवस्था सा हो जाये,
समझ लो जीवन अब ज़िन्दा नहीं है।
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