अच्छे इंसान की खूबसूरती को चश्मे के रंग से देखने की अक़्सर भूल होती है,
अच्छाई शीशे में नहीं दिल में उतरती है
और आंखों में छलकती है।
अहंकारी की भाषा में उसके अक्स का वज़न सबसे ज्यादा होता है
एक प्रेमी से मिल कर देखिए
वो टूटे पत्तों सा हवा में तैरता रहता है
बिना किसी परवाह के
कि आशियाने से कब मिलना होना
लोग अक़्सर कहते हैं संभल कर चलो
आजकल लोग सयाने हो चले हैं
भीड़ की शक़्ल देख उसकी तस्वीर नहीं ली जाती
हर एक जीवन में धूप सी रोशनी और रात के स्याह से बादल होते हैं
कमाने को तो लोग नाम और शोहरत कमाते हैं
पर कुछ लोग होतें हैं जिनके बारे में पीछे में भी बात होती है तो चेहरे पे मुस्कान छलक जाता है
अर्जित करना शायद इसे ही कहते हैं।
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