ख़ुद में ख़ुदा तो है,
ख़ुद से वो जुदा क्या है?
बड़ी-बड़ी बातों में रखा क्या है?
आख़िर उसमें हममें फासला क्या है?
तेरी शख्शियत बड़ा क्या है?
इन कागजों में गढ़ा क्या है?
जब तू ख़ुद हो गया,
तो ख़ुदा क्या है?
नश्वरता में शाश्वत क्या है?
बदलते मौसम में जड़ता क्या है?
तेरे मेरे होने में रखा क्या है?
इन तमाशों का माजरा क्या है?
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