आज रक्षाबंधन का दिन है और मैं लायब्रेरी के एकांत से एक कोने में बैठ कर नोम चोम्स्की का लिखा हुआ एक पत्र, जिसे एक जापानी उपन्यासकार केन्जाबुरो ओ को लिखा गया था, पढ़ रहा हूँ. यह पत्र एक इंसान के अंदर पल रही एक महान उथल पुथल को दर्शाता है. जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पे आण्विक बम गिराया था, एक जश्न का माहौल था उस देश में. नोम को यह जान कर गहरा धक्का लगा था, वे किसी से कुछ भी बोल नहीं पाए थे, बल्कि एक जंगल में बैठ कर घंटो सोचते रहे. आख़िरकार विनाश भी किसी को सुख दे सकता है क्या? जहाँ कितने घर उजड़ गए, कितने सपने दफ़न हो गए, भला उन्हें कुचलकर कैसे सुख पाया जा सकता है? कैसे चैन की नींद आयी होगी. मानव के विकास का यह सच हम सब जानते हैं. पर जानना नहीं चाहते, बस ये तो नकारात्मक बात है ना? क्यों बात करें इसकी! नोम चोम्स्की कहते हैं कि इन सारी समस्याओं की शुरुआत उस विचार से आती है जो हमें सिखाती है, "अपने बारे में सोचो". इस प्रकार हम अपनी पहचान को इतना छोटा कर लेते हैं कि आखिरकार बस भूल ही जाते हैं कि हम किसी एक समुद्र में यात्रा करने वाले सब पृथ्वीवासी हैं. भला कब तक ख़ुद में सि...
There is something in everything and everything in something.