ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है।
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
जीवन के कितने पन्ने, कुछ जाने, कुछ अनजाने,
अब एक ही रंग में ढ़ल जाता है।
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है।
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
आधुनिक रिश्ते को अब कौन सा पोथी सींचे जाता है?
आज का अख़बार ना जाने कितने रिश्ते बनाता है?
और कितने मिटा जाता है?
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है।
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
तंग-हाल में पड़ोसी भूखे पेट सो जाता है,
अख़बार के ख़बर के माफ़िक,
ये एहसास कुछ क्षण में मर जाता है।
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है।
छपने को बेचैन हर कोई,
सफलता के प्रमाण को तलाशता है।
अख़बार में छपी तस्वीर अक़्सर,
आवाम से अलग कर जाता है।
पहचान गढ़ना और मटियामेट कर देना,
अख़बार हर भाषा जानता है!
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है।
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
जीवन के कितने पन्ने, कुछ जाने, कुछ अनजाने,
अब एक ही रंग में ढ़ल जाता है।
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है।
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
आधुनिक रिश्ते को अब कौन सा पोथी सींचे जाता है?
आज का अख़बार ना जाने कितने रिश्ते बनाता है?
और कितने मिटा जाता है?
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है।
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
तंग-हाल में पड़ोसी भूखे पेट सो जाता है,
अख़बार के ख़बर के माफ़िक,
ये एहसास कुछ क्षण में मर जाता है।
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है।
छपने को बेचैन हर कोई,
सफलता के प्रमाण को तलाशता है।
अख़बार में छपी तस्वीर अक़्सर,
आवाम से अलग कर जाता है।
पहचान गढ़ना और मटियामेट कर देना,
अख़बार हर भाषा जानता है!
ये पन्ने अख़बार के पलटता हूँ तो जी घबराता है।
अब हर कोई उस संग गुज़रता है,
अब हर कोई एक सा बन जाता है!
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