आजकल की बात है लोग दूसरों में ख़ुद की परछाई खोजते हैं।
आजकल तो मात्र एक तकियाकलाम है;
ताकने झाँकने का हुनर का पता हमें हमारे इतिहास के लगाव से पता चलता है।
तरक़्क़ी का पैमाना इतिहास के झरोखें में गढ़ा जाता है;
ताकि गवाही में मनगढ़ंत चंद शब्द परोसे जाएँ।
इसीलिए किसी ने ख़ूब कहा है;
इतिहास खोजा नहीं जाता गढ़ा जाता है।
किसी ने स्याही के नुकीली बून्द से सरहदे बनाई,
और बसा-बसाया घर को पराया बना दिया।
मुल्क को बनाने में संविधान ही नहीं इतिहास भी काम आता है;
वही इतिहास जिसे गढ़ा जाता है।
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