सपनों से हकीकत तक
कल्पनाओं से गढ़ी गई हर एक गाँठ में
उसका ही बसेरा रहता है
जिसे हम मन कहा करते हैं
इसके कल्पनाओं की रस्सी से हमने
ना जाने कितने आशियाना बनाए-गिराए
उन पुराने पत्थरों के बंजारेपन से
आज भी कोई बच्चा आवाज देता है
उसे भी जवान होने का शौक था कभी
पर वो भूल जाता है शायद
कि हर-एक सपने समय के आगोश में बूढ़े हो जाते हैं
फिर भला वो पेड़
जिसे कभी हम अपने हाथों से सींचा करते थे
और एक समय वो मेरा हमसाया हुआ करता था
पर आज की मदमस्त आँधी ने उसे झकझोर के रख दिया है
ये सच है कि सपने देखने की हिम्मत होनी चाहिए
साकार होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगता
ये और बात है की जब वो पूरा होता है
तब तक सपने देखने वाला ही बदल जाता है
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