कल की बात है
अभी अभी तो आये थे
बाज़ार में चारो तरफ़ रौनक था
लोग कल आज कल का दामन छोड़
मोल भाव में मशहुल थे
जब से ख़रीदार बाज़ार से दूर हुए
बाज़ार में बिछा हुआ सामान
कई सवाल पूछ रहे हैं
उन सवालों में कुछ जवाब तो दफ़न हैं
उन जवाबों की शक़्ल अनगिनत सवालों सा है
एक सवाल जो ज़ुबान पे अटक सा गया है
की वो कौन सी दौलत है
जो समय के बाज़ार को
दाम की नीलामी लगा सकता है
हर बाज़ार के उसूल को
कौड़ी के भाव में ख़रीद नहीं सकते
कुछ दुकान पैसे से नहीं
उसूलों पे तौले जाते हैं
जिस बाज़ार में उसूल नीलाम होते हैं
वैसे बाज़ार में इन्सान बेचे खरीदे जाते हैं
आजकल इन्हीं बाज़ारों से मैं होकर गुजरता हूँ
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