बंधन है सपनों का दर्पण, निश्चलता करती मोह-मर्दन
सपनों से हर कोई हार जाता है, जीवन आँखों से ही पाता है
कोई चलता है कोई बहता है, कोई सोने का महल बनाता है,
बातों की खाल को ओढ़ कर वो जग में ज्ञानी कहलाता है
कोई मंत्र से वश में करता है, कोई यंत्रों की लड़ी लगाता है
चंचलता को गौर से देखो, ये जीते ही मरघट पहुँचाता है
वाणी के संगीत मनोहर कभी पत्थर को पिघलाता है
बादल का अट्ठहास लिये इस धरा में आ मिल जाता है
कुछ बातें ऐसी भी है जो शदियों की ज़ुबान चढ़ जाती है
कुछ कारोबार के मंडी में चंद सिक्को में बिक जाता है
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