कुछ सपने कुछ आशाएं अंकुरित हुए थे अभी, भेंट चढ़ गए, नफ़रत की चादर ओढ़े आज फिर से होलिका ने दुस्साहस किया है
लहूलुहान, रक्तरंजित, हुआ है आज माँ का आँचल,
दानवता का दंश ने आज फिर से आहत किया है
वीरों की कुर्बानी से नम है आज हर भारतीय की आँखें
मानवता के बैरी ने कुछ ऐसा अट्टहास किया है
लड़ने का हुनर तो दिलदारों में होता है भला
कपटी ने आज फिर से मर्माहत किया है
कुछ सपने कुछ आशाएं अंकुरित हुए थे अभी, भेंट चढ़ गए
नफ़रत की चादर ओढ़े आज फिर से होलिका ने दुस्साहस किया है
अंधे मन में हिंसा की चिंगारी फ़लित हुई है
प्रेमी बसन्त की सृजनशीलता बाधित हुई है
हठधर्मिता के शिखर पर बैठा है आज अंध-मानव
प्रेम की भाषा सिरे से ख़ारिज हुई है
स्वतंत्रता के मोल तो एक बलिदानी ही जाने
भटके मुजाहिद्दीन ने खुराफात किया है
कुछ सपने कुछ आशाएं अंकुरित हुए थे अभी, भेंट चढ़ गए
नफ़रत की चादर ओढ़े आज फिर से होलिका ने दुस्साहस किया है
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