इत्तेफ़ाक की बात है बस किया धरा तो कुछ भी नहीं था
वो कीचड़ से सने पैर ने मेरा बेड़ा पार लगाया था
मेरे नन्हें हाँथों को जीवन के सलीके सिखाया करता था वो
ख़ुद तन्हाई के भँवर में गोते लगाया था
बस शोर शराबे बदलते रहे हैं वो आवाज़ तो आज भी लगाता है
मेरी चौखट पे ना जाने क्यों वो रौशन दस्तक़ दे जाता है
वो चलता है मेरी परछाई बनकर जबकि मैं बड़ा दूर निकल आया हूँ
वो मिलेगा कहाँ भला उसका ठिकाना जो भूल आया हूँ
प्यास लगी है बहुत मुझे चलने की, ठहर जाता तो शायद उसे देख पाता
वो ज़िन्दा भी है या नहीं ये इत्मीनान तो हो जाता
ना जाने क्यों पर वो शक़्ल मेरी आँखों पे धुंधली हो चली है
मिलता तो वो हर दिन है मुझसे पर मैं उसका अक्स भूल आया हूँ
वो कीचड़ से सने पैर ने मेरा बेड़ा पार लगाया था
मेरे नन्हें हाँथों को जीवन के सलीके सिखाया करता था वो
ख़ुद तन्हाई के भँवर में गोते लगाया था
बस शोर शराबे बदलते रहे हैं वो आवाज़ तो आज भी लगाता है
मेरी चौखट पे ना जाने क्यों वो रौशन दस्तक़ दे जाता है
वो चलता है मेरी परछाई बनकर जबकि मैं बड़ा दूर निकल आया हूँ
वो मिलेगा कहाँ भला उसका ठिकाना जो भूल आया हूँ
प्यास लगी है बहुत मुझे चलने की, ठहर जाता तो शायद उसे देख पाता
वो ज़िन्दा भी है या नहीं ये इत्मीनान तो हो जाता
ना जाने क्यों पर वो शक़्ल मेरी आँखों पे धुंधली हो चली है
मिलता तो वो हर दिन है मुझसे पर मैं उसका अक्स भूल आया हूँ
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