कौन जीता कौन हारा?
जीतता तो कोई भी नहीं
हारता तो कोई भी नहीं
जो बना था कभी शिद्दत से
बिखरता ही गया
जो जुड़ा था कभी फुर्सत से
बिछड़ता ही गया
कितने फूल कितने बाग
चमन तो उजड़ता ही गया
पानी को देखता हूँ
इत्मिनान से बहता है
ठहरने को कहता हूँ
बिना सोचे वो चलता है
मंज़िल के बसेरों से जाने क्यों डरता है
राहगीरों की तरह ना जाने कितनी मंज़िल बदलता है
बेचैनी कहाँ लिये घूम रहे हो?
कभी धारा से सीखो
जिसकी कोमलता भी पत्थर तराश लाती है
जो प्रयासों से बचता है वो सिद्ध है
जो माँगता नहीं उसे जगत मिल जाता है!
जीतता तो कोई भी नहीं
हारता तो कोई भी नहीं
जो बना था कभी शिद्दत से
बिखरता ही गया
जो जुड़ा था कभी फुर्सत से
बिछड़ता ही गया
कितने फूल कितने बाग
चमन तो उजड़ता ही गया
पानी को देखता हूँ
इत्मिनान से बहता है
ठहरने को कहता हूँ
बिना सोचे वो चलता है
मंज़िल के बसेरों से जाने क्यों डरता है
राहगीरों की तरह ना जाने कितनी मंज़िल बदलता है
बेचैनी कहाँ लिये घूम रहे हो?
कभी धारा से सीखो
जिसकी कोमलता भी पत्थर तराश लाती है
जो प्रयासों से बचता है वो सिद्ध है
जो माँगता नहीं उसे जगत मिल जाता है!
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