बदलाव की सुनके आहट वो दौड़ रहा है सरपट,
अब भला आँख मूंद कर कौन सवेरा ढूंढ रहा है?
शब्दों के बाण से वो करदे सबको घायल,
पर प्यासे रहबर को भी वो सपने बेच रहा है।
कल के गर्भ में जाकर किसने देखा है बसेरा,
पर जो बीत गया है क्षण में उसकी पोथी बेच रहा है।
भ्रमजाल में उलझा मन है, कुण्ठा से उजड़ा बगीचा,
हर बात में कलह की रोटी बरसों से सेंक रहा है।
बहने दो जमे हुए बर्फ़ को कल तैराक बहुत आएंगे,
धारा को रोक के क्यों तुम फ़ासले उगा रहा है?
हर ज़ख्म को भरने में कुछ वक़्त तो ज़रूर लगेंगे,
तेरे दर्द की आँखे बनकर ये मौसम भींग रहा है।
अब भला आँख मूंद कर कौन सवेरा ढूंढ रहा है?
शब्दों के बाण से वो करदे सबको घायल,
पर प्यासे रहबर को भी वो सपने बेच रहा है।
कल के गर्भ में जाकर किसने देखा है बसेरा,
पर जो बीत गया है क्षण में उसकी पोथी बेच रहा है।
भ्रमजाल में उलझा मन है, कुण्ठा से उजड़ा बगीचा,
हर बात में कलह की रोटी बरसों से सेंक रहा है।
बहने दो जमे हुए बर्फ़ को कल तैराक बहुत आएंगे,
धारा को रोक के क्यों तुम फ़ासले उगा रहा है?
हर ज़ख्म को भरने में कुछ वक़्त तो ज़रूर लगेंगे,
तेरे दर्द की आँखे बनकर ये मौसम भींग रहा है।
Comments
Post a Comment