विक्टर फ्रांकेल की पुस्तक "मैनस सर्च ऑफ मीनिंग" एक धरोहर है जिसे पढ़ने और मनन करने की आवश्यकता है। पढ़ना इसीलिए भी जरूरी है क्योंकि ऐसी पुस्तकें आशा का संचार ऐसे समय में करती नज़र आती है जबकि आप "ऐझेेंसटेंसीएल वैक्यूम" से गुजरते हों। आशा और विश्वास मानव के लिये जीवन के मतलब के कई मायने तलाश करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। आज के अत्याधुनिक रफ़्तार वाले मानव जीवन में सारहीनता एक अटल सत्य सा बन गया है। मानसिक बीमारियों के सैलाब ने मनुष्य को आत्महत्या तक को प्रेरित किया है। दुर्खीम के शब्दों में इसे "अनोमिक सुसाइड" कहते हैं। ऐसे समय में विक्टर फ्रांकेल आशा का संचार करते नज़र आते हैं। उनके द्वारा ईजाद "लोगोथेरपी", जिसका उद्देश्य जीवन के सार को ढूढ़ना है, ने मानव सभ्यता को एक नई दिशा दी थी। विक्टर फ्रांकेल का ख़ुद का जीवन भी नाज़ी के कैम्प में बिता जहाँ पे हर समय मृत्यु का खतरा बना रहता था। उनकी पुस्तक बुद्ध, सौपेनहावर, और गाँधी के "सफरिंग" मूलक विवेचना को एक नई ऊँचाई देती नज़र आती है, वहीं दूसरी ओर सात्र द्वारा विकसित एकझेस्टेंसीएलिस्म को वो स्प्रिचुअलिज्म के क़रीब पाते हैं। इस पुस्तक की पृष्टभूमि कैम्प में ही निर्धारित होती है जहाँपे वो "प्रोविजनल जीवन" जी रहे होते हैं। जरा सोचिये ऐसी अवस्था के बारे में जबकि आपको ये मालूम ना हो कि आप स्वतन्त्रता देख पाएंगे या नहीं? कब तक मौत के साये में जियेंगे? जहाँ पे मनुष्य "डीपर्सनलाइजेसन" का स्तर छू चुका हो, ऐसे में मानव संवेदना को संजो कर रखना कि जब वो आज़ादी आएगी तो ये पीड़ा के दिन भी विज्ञान के कौतूहल का केंद्र बन जायेगा। ऐसा ही कुछ अनुभव वो अपने पुस्तक के माध्यम से बताते नज़र आते हैं।
सच्चा रास्ता वो नहीं होता जिसे लोग बताते हैं, बल्कि जिसे व्यक्ति ख़ुद ढूंढ पाये। सच्चा सुख वो नहीं होता जिसमें पीड़ा ही ना हो! सच्चा दर्द वो होता है जिससे आशा का संचार हो, जिसमें बलिदान का अर्थ हो। हमारे जीवन की गाड़ी के दो पहिये हैं, एक जो बीत चुका है, उसे आपको स्वीकारना ही होगा। दुख-सुख, पीड़ा सारे अनुभव जो आपके हैं और आपसे कोई छिन नहीं सकता। और दूसरा जो चल रहा है; उस क्षण आपके पास चॉइस है। आपका व्यवहार, आपके कृत्य, आपके विचार, आपके व्यक्तित्व को बनाते हैं। इस सन्सार में कोई सार्वभौमिक सत्य को नहीं ढूंढ सकता। ये तो व्यक्ति वैशेषिक है। जरूरत ये नहीं है जानना कि आप जीवन से क्या चाहते हैं, बल्कि जीवन आपसे क्या चाहता है? सात्र ने कहा था जीवन का लक्ष्य जीवन निर्माण नहीं है, बल्कि जीवन की खोज है। मेरे ख्याल में विक्टर फ्रांकेल की ये पुस्तक मनन करने योग्य है, जबकि जीवन के दौड़ में मनुष्य "आत्मिक रिश्ते" को खोता जा रहा है। उपयोगितावाद के बाज़ार में जीवन की खोज एक सच्चे समर्पण की मांग करती है। जिसमें मनुष्य ख़ुद के आवरण से उठकर समाज बन जाता है, विचार बन जाता है, अभिव्यक्ति का रूप ले लेता है! यही जीवन की खोज है जिसमें हर किसी को अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी है!
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