कौन जाने सत्य क्या है? कौन जाने राह क्या है? जब राह का ही पता नहीं तो ग़ुमराह क्या है? कौन जाने आबाद क्या है? कौन जाने बर्बाद क्या है? धरा की मटियामेट लीला में जीवन का होना क्या है? अधिकारों की चंद बस्ति में समाज का होना क्या है? कौन जाने ख़ुद क्या है? कौन जाने ख़ुदा क्या है? जब जानते ही नहीं कुछ फ़िर ये मसलों पे मसला क्या है? बस जीवन है और धारा है, सब कुछ रमता पानी है, आते जाते सांसों पे, चंद संवरती-बिगड़ती कहानी है। जीवन धारता है उस पग को, जो रास्ते बनाना जानते हैं, वो मुर्दे ही होते हैं जो, अभी जीने से कतराते हैं। वो जीवन नहीं अभिलाषा है, जो हर पग की एक बाधा है, कहीं काँटे बन चुभ जाता है, कहीं नागिन बन डंस जाता है। हो गर सच्ची आस्था तो मतभेद क्या? विश्वास के नाविक को दुसरेपन का भेद क्या? समर्पित भाव से पराया भी अपना हो जाता है, जो माँगता नहीं उसे सबकुछ मिल जाता है।
There is something in everything and everything in something.