तुम आये और चुपके से यूँ निकल गए,
कि जबकि अब तुम नहीं हो तो ये इंद्रधनुषि सा आसमान फीका-फीका सा लगता है।
आखों से ना जाने क्या-क्या कह गए कि तुम पे समर्पित हर लब्ज़ अधूरा लगता है।
कुछ राहगीर हैं जो मन्ज़िल को चुनते नज़र आते हैं,
पर तूने जो पत्थरों को छीलकर अरमान सजाये हैं;
कि तेरा ये अंदाज बड़ा अच्छा लगता है।
अगर आ सको तो इसी मिट्टी पे आना,
ये मिट्टी भी तुम्हें खूब याद करता है।
कि जबकि अब तुम नहीं हो तो ये इंद्रधनुषि सा आसमान फीका-फीका सा लगता है।
आखों से ना जाने क्या-क्या कह गए कि तुम पे समर्पित हर लब्ज़ अधूरा लगता है।
कुछ राहगीर हैं जो मन्ज़िल को चुनते नज़र आते हैं,
पर तूने जो पत्थरों को छीलकर अरमान सजाये हैं;
कि तेरा ये अंदाज बड़ा अच्छा लगता है।
अगर आ सको तो इसी मिट्टी पे आना,
ये मिट्टी भी तुम्हें खूब याद करता है।
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