शब्द कहाँ हैं उचित भला जो प्रकृति के ज़ज्बात को क़ैद कर ले
फ़िर भी कुछ तो कहना है, कुछ बातें करनी है
बात करने को भला बाकी क्या रहा है अब
एक ख़ामोशी है इस शाम के ढ़लते सूरज में
और एक उम्मीद की किरण
जो किसी के संसार को सुबह की रौशनी प्रदान कर रही होगी
एक हम ही हैं उच्च किस्म के विकासवादी आदम
जो दिन के उजाले को क़ैद करना चाहता है अपनी तिजोरी में
ताकि रात का मंज़र ना देखना पड़े!
पर रात और दिन बस देखने का फ़र्क है
उजाले बेवजूद हैं काली स्याह के बगैर
अब किसी एक को चुनना तो नासमझी ही होगी।
चुनाव का मतलब है असमंजस
सत्य विलीन है हर एक कल्पना में
धरती पे नज़र गड़ा के देखो
हर जगह जीवन करतब कर रहा है
इसके लिए किसी यान की नहीं
दृष्टि की आवश्यकता है
जो है तो सबके पास
पर उपयोग के बिना आंखे वही देखती है
जिसे दिखाया जाता है
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