अक़्सर लोग कहा करते हैं सकारात्मक बातें करो। सब कुछ अच्छा हो जाएगा! पर सब कुछ अच्छा होना भी नकारात्मकता की निशानी है। दुनिया में क्या अच्छा है और क्या बुरा है इसका फैसला किस पैमाने पर होता है? अच्छाई-बुराई तो नज़र और नजरिये का खेल मालूम पड़ता है। नैतिकता का जन्म अनैतिकता के माने हुए पैमाने के साथ हुआ होगा वरना नैतिकता की पहचान कैसे की जा सकती है। जैसे मानव ने अपने दुःख को सार्थकता देने के लिए पंथो की स्थापना की। ईश्वर की परिकल्पना की। जन्म-पुनर्जन्म की बातें की गई।
आख़िर में हम नकरात्मक पक्ष से डरते क्यों है? और अक़्सर इसे रात की संज्ञा देते हैं। वही रात जिसके आगोश में हम चैन की नींद सोते हैं। और भला पूरे दिन के लिये ऊर्जा का स्रोत क्या है? दुनिया की हर एक सच्चाई के दो पहलू मालूम पड़ते हैं। जब तक हम उजाले को ही सिर्फ़ सच मानते रहेंगे, सच्चाई से दूर ही रहेंगे। हर पक्ष का विरोधाभासी पक्ष है। जो पक्ष-विपक्ष से दूर होना चाहता है वो भी एक पक्ष के साथ है। और हमेशा एक ही पक्ष के साथ रहेगा इसे पुख्ता तौर पर कहा नहीं जा सकता। सच तो यही है कि बदलाव एक मात्र सच है। जिसे मुट्ठी में क़ैद करने की हिमाकत करना दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है! जो आया है वो जाएगा। हम सब जानते हैं। पर इसे भूल जाना चाहते हैं, ये सोचकर कि अभी अभी ही तो आये हैं।
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