मैं कौन हूँ भला क्या चेहरा बयाँ कर पाया?
ये उदासी का सबब वो हसंता बचपन
कभी उमंगों की भीड़ कभी निराश सा आँगन
जीने की तमन्ना थी बस बढ़ता चला आया
मैं कौन हूँ भला क्या चेहरा बयाँ कर पाया?
सवाल कितने हैं जहां में जिसे मुक़म्मल का नाम दूँ?
जज़्बात को कैसे भला चंद लब्ज़ों में परोस दूँ?
जंग ख़ुद से ही किया और हारता आया
मैं कौन हूँ भला क्या चेहरा बयाँ कर पाया?
ये उदासी का सबब वो हसंता बचपन
कभी उमंगों की भीड़ कभी निराश सा आँगन
जीने की तमन्ना थी बस बढ़ता चला आया
मैं कौन हूँ भला क्या चेहरा बयाँ कर पाया?
सवाल कितने हैं जहां में जिसे मुक़म्मल का नाम दूँ?
जज़्बात को कैसे भला चंद लब्ज़ों में परोस दूँ?
जंग ख़ुद से ही किया और हारता आया
मैं कौन हूँ भला क्या चेहरा बयाँ कर पाया?
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