आज है, हम हैं और शाम भी है
कल की तारीख़ आएगी
पर हम इस मौसम में फ़िर ना होंगे
शाम इस वक़्त का एहसास दिला रही है
मानो जीवन अर्थ और अनर्थ की कल्पना से अलग है
दिन-रात की सिमटती परिकल्पना ही मानव अर्थ-ज्ञान का प्रतिबिंब है
आज शाम को महसूस कर रहा हूँ
ये वक़्त का वो पहर है जहाँ जीवन-मृत्यु का युग्म अधूरा है, ये शाम मुकम्मल है, पूरा है
कल की तारीख़ आएगी
पर हम इस मौसम में फ़िर ना होंगे
शाम इस वक़्त का एहसास दिला रही है
मानो जीवन अर्थ और अनर्थ की कल्पना से अलग है
दिन-रात की सिमटती परिकल्पना ही मानव अर्थ-ज्ञान का प्रतिबिंब है
आज शाम को महसूस कर रहा हूँ
ये वक़्त का वो पहर है जहाँ जीवन-मृत्यु का युग्म अधूरा है, ये शाम मुकम्मल है, पूरा है
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