नेतृत्वकर्ता करुणामयी होता है. जिसके पास अहंकार आती है तो उसे दया भाव से देखता है, और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाता है. अहंकार एक स्वाभाविक लक्षण है. जब तक अस्तित्व है तब तक अहंकार है, इसे मिटाया नहीं जा सकता, पर बेहतर होता है कि वो हावी ना हो. हमारे समाज में, चाहे वो मनुष्य हो या जानवर हो, नेतृत्व करना हर किसी की बात नहीं है. नेतृत्वकर्ता अपने काम को इबादत की नज़र से देखता है. अनुपालन करने वाला पूरी ज़िंदगी इसी बात में गर्व करके बिता देता है कि कितना सफल व्यक्ति उसे जानता है. उसका अस्तित्व बस इस बात पे निर्भर करता है कि वो कैसे दूसरों की ज़िंदगी का हिस्सा बन सके. इस प्रकार वो अपनी ज़िंदगी के अध्याय को लिख नहीं पाता है. भटकता रहता है पर उसे मालूम नहीं कि वो क्या कर रहा है. प्लेटो, ग्रीक दार्शनिक, ने सही कहा था कि नेतृत्व करना हर किसी के बस की बात नहीं है. क्योंकि नेता वो है जिसकी अपनी स्वतंत्र आवाज हो. जो खोने को भी पाने जैसा सत्कार करता हो. जो सीखता रहता हो बिना किसी अहंकार के, अपने ईर्ष्या को अपना मित्र समझकर उससे बातें करता हो. मैं हैरान नहीं होता इस बात पे की लोग अनुपालन को उपलब्ध क्यों
There is something in everything and everything in something.