कुछ धुँधली सी कुछ यादों सी वो शाम की ढ़लती आभा
कई सवेरे हुए, अंधेरे हुए, पर वो रंग रही अभागा
कई औघड़ देखा, कई रावण देखा
हर मौसम में कई सावन देखा
कुछ चलता गया कुछ रुक सा गया
कुछ बादलों सा बरस सा गया
चंद किस्से सही कभी अपने हुए
कुछ किस्सों का साथी मैं बनता गया
कुछ मिले भी नहीं और बिछड़ से गये
कुछ बिछड़न में उनसे मिलना हुआ
कई मंज़िलें मिली कुछ रास्ते मिले
कुछ रास्तों की कोई ना मंज़िल मिली
कई बहारों की गलियों में उदासी मिली
कई बेचारों के छत बेसहारे मिले
कुछ लिखता गया कुछ भूल सा गया
मैं राही जो था बस चलता गया
कई सवेरे हुए, अंधेरे हुए, पर वो रंग रही अभागा
कई औघड़ देखा, कई रावण देखा
हर मौसम में कई सावन देखा
कुछ चलता गया कुछ रुक सा गया
कुछ बादलों सा बरस सा गया
चंद किस्से सही कभी अपने हुए
कुछ किस्सों का साथी मैं बनता गया
कुछ मिले भी नहीं और बिछड़ से गये
कुछ बिछड़न में उनसे मिलना हुआ
कई मंज़िलें मिली कुछ रास्ते मिले
कुछ रास्तों की कोई ना मंज़िल मिली
कई बहारों की गलियों में उदासी मिली
कई बेचारों के छत बेसहारे मिले
कुछ लिखता गया कुछ भूल सा गया
मैं राही जो था बस चलता गया
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