अहं का कैसा भ्रम है? शायद, कुछ शब्दों, कुछ विचारों से निर्मित हुआ है। व्यक्तित्व का कैसा बोध है? वो व्यक्त करने की विधा में उलझा पड़ा है। सहिष्णु कौन है? शायद कोई नहीं; हर कोई ख़ुद में और ख़ुद के होने को संघर्षरत है। शान्ति कहाँ है? प्रकृति के विशाल ह्रदय में; जो हर अस्तित्व के आंतरिक व बाह्य जगत में विद्यमान है। समाज क्या है? प्रथा से निर्मित व्यवस्था है। स्वतंत्रता क्या है? जीवन का सर्वोच्च शिखर! क्या समाज व स्वतंत्रता एक साथ संभव है? निस्संदेह! गर समाज का प्राथमिक इकाई सोचने व व्यक्त करने को स्वतंत्र हो, ऐसा समाज ही स्वतंत्र माना जा सकता है। न्याय क्या है? अन्याय की परिभाषा से निर्मित विचार-संग्रह, जिसे कई भाषाओं में पिरोया गया है। अन्याय क्या है? असमानांतर व्यवहार। दंड व पुरस्कार का अनियमित वितरण, और ना जाने कितने मापदण्ड बनाए गए हैं। कई बार अन्याय परिभाषा से उपर ह्रदय में महसूस होता है। मापदंड क्या है? इस जगत के सारे मापदंड मनुष्य द्वारा निर्मित व्यवस्था है। प्रकृति का सत्य हमारे मापदंडों से प्रभावित नहीं होता है। हम अपने ज्ञान का डंका पीटते रहते हैं, जबकि हमारे ज्ञान से प्रकृति...
There is something in everything and everything in something.