कहते हैं ज़हर बेचना आसान है दो मीठे बोल के सामने,
ज़हर बेचकर लोग बड़े व्यापारी बन जाते हैं।
धन-दौलत का पता नहीं,
पर ज़हर से आजकल शोहरत बहुत आसानी से इकट्ठा हो जाता है।
शोहरत भी क्या?
आदमी अपनी शान्ति को कौड़ी के दाम पे निलाम कर जाता है।
बड़ा बनने की ख्वाहिश में,
ख़ुद में निहित ख़ुदा को हर रोज ठोकर मारता रहता है।
और कोलाहल से सने मन्दिर-मस्जिद में,
ईश्वर की तलाश में भटकता रहता है।
कबीर, मीरा, और श्रीराम कृष्णा की बातें तो करता है,
पर अपने ही आत्मा को ताक पर रखकर
ईश्वर नाम की धूनी रमाता है।
छोटे से प्रतीकों को धर्म बनाता है,
और धर्मों को संगठित कर व्यवसाय चलाता है।
इन तमाशों के बीच,
जीवन एक मुट्ठी रेत जैसा
हाथ से निकल जाता है।
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