सच और झूठ के दायरे में एक छोटा सा फर्क है, झूठ हर एक दिन जीता है, सच हर पल मरता है।
झूठ के महल शानो शौकत में जीते हैं, और सच्चाई का दामन वो मैला आँचल है, जिसके रहगुज़र में अनदेखी तन्हाई के सिवा कुछ नहीं मिलती।
किससे कहोगे कि मेरे पास एक सच है, जबकि झूठ के मंदिर में वो हर एक दिन पूजा करते हैं!
लोग कहेंगे कि इस सच का हठ छोड़ दो, भीड़ जिस ओर चलती सच्चाई वही है, जो वो गढ़ती है।
जीना है तो सच की हठ छोड़ दो, जिओ और हमें भी जीने दो।
जीने की तमन्ना में हम एक गुनाह हर रोज करते हैं, हर रोज मरते हैं, हर रोज मरते हैं!
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