शिक्षा व्यवस्था को लेकर अक़्सर बातें होती रहती है। व्यवस्था का बनना और बिखरना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। दुनिया के किसी भी व्यवस्था को समझने का प्रयास किया जाए, एक बात निश्चय ही निकल कर आयेगी कि वो व्यवस्था सम्पूर्णता के शिखर से दूर ही रही थी। क्योंकि सम्पूर्णता के पैमाने एक नहीं हुआ करते। सम्पूर्णता का निर्माण समाज की रीतियाँ और उसके सांस्कृतिक विरासत तय करते हैं। हम अक़्सर आधे-अधूरे विचारों से समावेशी विचारधारा नहीं बना सकते। उसके लिये निरंतर अध्ययन और विरोधाभासों से लड़ना होता है। सम्पूर्णता एक प्रक्रिया है, कोई समापन नहीं जिसे सदा के लिये प्रतिस्थापित किया जा सके! शिक्षा और उससे जुड़ी व्यवस्था का मूल्यांकन उसके नौकरी देनेवाली क्षमता से करना न्यायोचित नहीं हो सकता। शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य निर्माण, विखंडन, एवं पुनर्निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करना है। शिक्षा अंधकार में प्रकाश की ओर अग्रसर करने का सर्वोच्च माध्यम है। शिक्षा जीवन है। शिक्षा स्वतन्त्रता है। शिक्षा से मूल्यवान सम्पदा एवं मूल्य मनुष्य ने अभी तक विकसित नहीं किया है। और नाही किया जा सकेगा। पर ऐसा क्या कारण है कि शिक्षा...
There is something in everything and everything in something.