हर घड़ी यूँही गुज़ार देता हूँ कि समय तो अभी आया ही नहीं,
रफ़्ता रफ़्ता ज़िन्दगी कुछ इस क़दर खर्च हो जाती है।
आज की ख़ुशी और आज के ग़म को जीया भी नहीं,
और कल का सवेरा एक नया आज लेता हुआ आया है।
इंतेज़ार की दरकार में इतनी शदियाँ बीत गयी,
पर आज भी ज़न्नत धरा से दूर ही रहा है,
ना जाने कौन से फ़लक़ पे जा बसा होगा?
हक़ीक़त से सहमी हुई आँखें अक़्सर बता जाती है कि हमें सपनों में जीने की आदत है,
सच्चाई से भला किसे डर नहीं लगता?
रफ़्ता रफ़्ता ज़िन्दगी कुछ इस क़दर खर्च हो जाती है।
आज की ख़ुशी और आज के ग़म को जीया भी नहीं,
और कल का सवेरा एक नया आज लेता हुआ आया है।
इंतेज़ार की दरकार में इतनी शदियाँ बीत गयी,
पर आज भी ज़न्नत धरा से दूर ही रहा है,
ना जाने कौन से फ़लक़ पे जा बसा होगा?
हक़ीक़त से सहमी हुई आँखें अक़्सर बता जाती है कि हमें सपनों में जीने की आदत है,
सच्चाई से भला किसे डर नहीं लगता?
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