मिलना हुआ ना हुआ कोई ग़म नहीं,
मिलने के बहाने जो अभी ज़िन्दा है हमारे जेहन में।
कुछ मुलाकातों से बेहतर उसके ख़यालात होते हैं,
और बिना मिले ही अफ़साने सुहाने बन जाते हैं।
मिलके अक़्सर कल्पना के दीप बुझ जाते हैं,
जब मिलता है सच का असली चेहरा।
ऐसा क्या है जो सच है और कल्पना भी नहीं है?
ऐसी कौन सी कल्पना है जो वास्तविकता से दूर है?
मुलाकातों को ज़िन्दा रखने के लिये आओ थोड़ी दूरी बना लें,
कि जब मिलें तो वो वक़्त सदियाँ लिये आये,
और जब गुज़रे तो एहसास भी ना हो कि हमने कुछ वक़्त साझा किया था।
मिलने के बहाने जो अभी ज़िन्दा है हमारे जेहन में।
कुछ मुलाकातों से बेहतर उसके ख़यालात होते हैं,
और बिना मिले ही अफ़साने सुहाने बन जाते हैं।
मिलके अक़्सर कल्पना के दीप बुझ जाते हैं,
जब मिलता है सच का असली चेहरा।
ऐसा क्या है जो सच है और कल्पना भी नहीं है?
ऐसी कौन सी कल्पना है जो वास्तविकता से दूर है?
मुलाकातों को ज़िन्दा रखने के लिये आओ थोड़ी दूरी बना लें,
कि जब मिलें तो वो वक़्त सदियाँ लिये आये,
और जब गुज़रे तो एहसास भी ना हो कि हमने कुछ वक़्त साझा किया था।
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