खोजता हूँ कुछ ऐसी राहें जिसपे चलकर हारने की खुशी हो और जीतने का ग़म,
जो ले जाये हमें बेनाम से मंज़िल पे,
जहाँ मेरे सपने भी क़दमताल से डरते थे।
आजकल क़ैद के रिवाज़ मानो कुछ इस क़दर है कि हम क़ैदी भी हो गए और हमें पता भी नहीं चला।
इस बागीचे में हर शक़्स कई नाम लिये बेच रहा है,
गर ख़रीददार ना मिले तो तोहफ़े में नाम दिए जा रहा है।
नाम की चाहत में कितने बादशाह लुटे और लूट गए,
जिसे नाम की चाहत ही नहीं वो भला बदनामी के जलसे में कहाँ नीलाम होता है।
इतने नाम इतनी शोहरत कि अब ज़िन्दा होने की शक़्ल बदल गयी है,
ज़िन्दा तो आज आलिशान महल भी है,
पर वो क़ब्रगाह की शक्लोसूरत लिये शैलानीयों के कौतूहलता का गवाह है।
ज़िन्दा तो मुर्दे भी होते हैं,
बस फ़र्क इतना है कि वो मर के ज़िन्दा हैं,
और हम जीते हैं मरे हुए!
जो ले जाये हमें बेनाम से मंज़िल पे,
जहाँ मेरे सपने भी क़दमताल से डरते थे।
आजकल क़ैद के रिवाज़ मानो कुछ इस क़दर है कि हम क़ैदी भी हो गए और हमें पता भी नहीं चला।
इस बागीचे में हर शक़्स कई नाम लिये बेच रहा है,
गर ख़रीददार ना मिले तो तोहफ़े में नाम दिए जा रहा है।
नाम की चाहत में कितने बादशाह लुटे और लूट गए,
जिसे नाम की चाहत ही नहीं वो भला बदनामी के जलसे में कहाँ नीलाम होता है।
इतने नाम इतनी शोहरत कि अब ज़िन्दा होने की शक़्ल बदल गयी है,
ज़िन्दा तो आज आलिशान महल भी है,
पर वो क़ब्रगाह की शक्लोसूरत लिये शैलानीयों के कौतूहलता का गवाह है।
ज़िन्दा तो मुर्दे भी होते हैं,
बस फ़र्क इतना है कि वो मर के ज़िन्दा हैं,
और हम जीते हैं मरे हुए!
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