उड़ने दो स्वच्छंद आसमान में
संध्या की इस मधुर बेला में
रोकोगे ख़ुद को कब तक
भेद-विभेद के झमेला में
तुमने तो जीवन देखा है दिन के उजाले से
या फिर रात के अंधेरे में
प्रातः काल की कलरव भूल कर
खोये शाम विचरने में
तारीख़ ये तेरे काम आएंगे
इतिहास के पन्ने गढ़ने में
लौटकर कौन सा सावन आया
विदा किया जिसे बचपन में
उड़ने दो स्वच्छंद आसमान में
संध्या की इस मधुर बेला में
रोकोगे ख़ुद को कब तक
भेद-विभेद के झमेला में
संध्या की इस मधुर बेला में
रोकोगे ख़ुद को कब तक
भेद-विभेद के झमेला में
तुमने तो जीवन देखा है दिन के उजाले से
या फिर रात के अंधेरे में
प्रातः काल की कलरव भूल कर
खोये शाम विचरने में
तारीख़ ये तेरे काम आएंगे
इतिहास के पन्ने गढ़ने में
लौटकर कौन सा सावन आया
विदा किया जिसे बचपन में
उड़ने दो स्वच्छंद आसमान में
संध्या की इस मधुर बेला में
रोकोगे ख़ुद को कब तक
भेद-विभेद के झमेला में
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