जीवन कला है, और विज्ञान कला में शब्दों के अलावा कोई फ़र्क नहीं मालूम पड़ता। कला इसीलिए कहता हूँ, क्योंकि इसे गढ़ा जाता है, तराशा जाता है, निखारा जाता है। इस प्रक्रिया में पुराने नए बनाये जाते हैं। अविनाश तो कुछ भी नहीं है। आत्मा भी नहीं। आत्मा जो ठहर गई तो आत्मा कहाँ मुर्दा है। जो नया है वो पुराना भी होगा। हमारा जीवन हर पल नया है, और हर नया पल जीवन का इतिहास है, जिसे जिया जा चुका है। वापिस नहीं लौटेगा, मस्तिष्क में भी नहीं। यादों में भी नहीं। लौटना नहीं चाहिए। क्यों लौटे? धाराएं लौटा नहीं करती। सागर में विलीन हो जाती है। आपकी दृष्टि, आपका दृष्टिकोण, सब कुछ बदलता है। आप हैरान होते हैं ख़ुद को अतित में देख कर, कितने बचकाने थे, कितने नादान! इतिहास को वर्तमान की दृष्टि से देखना भूल है। ऐसी भूल मानों वर्तमान ने सत्य ढूंढ़ लिया है, जीवन खोज लिया है, ब्रह्याण्ड के रहस्यों पे प्रकाशमयी दृष्टि डाल चुका है। यह बात सच नहीं है। नादान तो हम आज भी हैं। बस हमारा मानव होना एक अहंकार की बात मालूम पड़ती है। हमारा अस्तित्व हमें सृष्टि के केंद्र में लाने को उताहूल है। मानों ब्रह्याण्ड के हम रचयिता हैं। इसे उभरते और बिगड़ते स्वरूप के कलाकार! इस दृष्टि में बुनियादी भूल है। मोन्टेस्क्यूँ सच ही कहता है, "अगर एक त्रिभुज का कोई भगवान होता तो वो भी त्रिभुजाकार होता है!" दृष्टि शिथिल मालूम होती है। लेकिन इतिहास की दृष्टि हमारे दर्शन को बचकानी सिद्ध करती आयी है। संकट हमारा मार्गदर्शक है। सच्चा मार्गदर्शक! वो बताता है रास्ते भूल आये हो। जीवन का ठिकाना उस तरफ नहीं है। अहंकार को छोड़ ख़ुद को तराशो, ख़ुद को बदलते क्यूँ नहीं? दुनिया को बदलने चले हो। एक ख़ुद नहीं बदला जाता। ख़ुद के आदतों के शिकार हो। हर दिन ग्लानि भाव में जिते हो। बुद्ध के हीनयानी इस बात पे प्रकाश डालते हैं। उन्होंने ख़ुद के बदलाव में दिलचस्पी दिखाई। अपने नाव की तलाश करो। नदी तुम्हारा संकल्प है, तुम्हारा रास्ता है। सब को पार करना चाहते हो, ख़ुद नाविक होने का एक भी हूनर नहीं है तुम्हारे पास। फ़िर कहोगे ये दूसरों के कारण हो रहा है। हमारा तो कोई कसूर ही नहीं है। अमुक व्यक्ति जिम्मेदार है। वो हमारे मार्ग में ख़लल डालता है। यह बात सच नहीं है। ऐसी बातें तुम्हें जीवन से विमुख करती है। बहाने ढूंढ़ना बंद क्यों नहीं कर देते? रास्ते बनाना क्यों नहीं सिखते? गाँधी ने कौन सा बहाना किया? उन्होंने रास्ते को तराशा। वो मंज़िल के क़रीब पहुँचते गए। सुबह होता नहीं खोजने लग जाते हो बहाने! इससे तुम बहानों का एक संसार निर्मित कर रहे हो। तुम भी एक कलाकार हो जो बहानों की कलाकृतियों को गढ़ता है। और उसे भी किसी अन्य बहाने को समर्पित करता है! मैंने अक़्सर ग़रीबी का नाम जपने वालों के अंदर ग़रीबी के प्रति श्रद्धा देखी है। वो ग़रीबी दूर करने में दिलचस्पी नहीं रखते, उसे ज़िन्दा करके रखते हैं। घाव भरा नहीं कुरेद दिए। घाव सड़ता रहेगा और वे गरीबों के मशीहा बने रहेंगे। कई बार व्यक्ति को ही एहसास नहीं होता है कि वो ग़रीब कैसे है? पर मसीहा उन्हें ग़रीबी के ताज से नवाजे रहते हैं। इसमें उनका क्या जाता है? उसी ग़रीबी के ताज में वो ज़िन्दा हैं। यही बात धर्मगुरुओं पे भी लागू होती है। धर्म का सार नहीं जाना, धर्म का सन्सार नहीं जाना, गुरु बने बैठें है। कहते हैं आम लोंगों को कुछ पता नहीं! मानो वो कुछ खास हैं। वो अवतार हैं, महामानव हैं! "आम" भी एक खास शब्द है। हर खास के लिये पूरी दुनिया आम है, पर उसके सिवा! बस वही जानता है! उसी के पास आँख है, तीसरी आँख! उसे ईश्वर ने बड़े मेहनत से तराशा है! अनमोल कृति! आम तो आम है! उन्हें कुछ भी पता नहीं। विशेषज्ञों की भीड़ है। वो खास भीड़ जो आम से अलग है। विशेषज्ञ आज के स्वघोषित भगवान हैं। जिसे कोई स्वीकार नहीं करता। वे ख़ुद को भी स्वीकार नहीं कर पाते! इस आम-खास के द्वंद में जीवन की खोज कहाँ है? जीवन आम के पास है। ख़ुद के पास है। हर कोई आम है और हर कोई खास है। अनूठा है, क्योंकि जीवन का अंग है। समस्त है। टुकड़ों में है और परिपूर्ण भी है। किस बात का अहंकार, किस बात की जलन? आज गर ख़ुद से खुश नहीं हो तो फ़िर कब होंगे? अपने रास्ते ख़ुद गढ़ो, ख़ुद से ही ख़ुदा है!
पढ़ता हूँ हर एक दिन एक ही पन्ना, हर दिन हज़ार ये मालूम पड़ते हैं। जबसे होश संभाला है एक ही पन्ना सवांरते आया हूँ, लोग इसे ज़िन्दगी कहते हैं। इसपे लिखे हर एक लब्ज़ जो मेरे मालूम पड़ते हैं, ना जाने कितने जुबां पे चढ़े होंगे। आज हम भी कुछ पल के लिए ही सही इसके सारथी हैं, जाने से पहले कुछ रंग मेरा भी इसपे चढ़ जाए, बस इसीलिए एक ही पन्ना बार बार पलटता रहता हूँ। हर कोई अनजाने किताब की तलाश में बाहर निकलता है, जिसका हर एक पन्ना वो ख़ुद है। जब ख़ुद के रंग को समझ ही ना पाया, तो भला इंद्रधनुषी किताब के क्या मायने हैं? अस्तित्व में ना जाने कितने पन्ने बिखरे पड़े हैं, बस एक से ही अवगत हो जाऊँ, उसके हर एक शब्द को चुनता जाऊँ, कुछ पल के लिये सही, पिरोता जाऊँ एक माला ज़िन्दगी का।
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