तू कौन से मकां में रहता?
चारदीवारी को आशियां समझ बैठे,
मिट्टी के पुतलों सा बागवां में उलझ बैठे,
वो खाली पड़े आसमाँ में रहता।
तू कौन से मकां में रहता?
प्रतिबिम्ब को चेहरा मान बैठे
आईने के हर पहलू को पहचान बैठे
हर भाव हर आहट को जान बैठे
रिश्तों की बागडोरी को बाँध बैठे
वो निष्काम, निर्दोष हर पल तुझे देखता रहता
तू कौन से मकां में रहता?
चारदीवारी को आशियां समझ बैठे,
मिट्टी के पुतलों सा बागवां में उलझ बैठे,
वो खाली पड़े आसमाँ में रहता।
तू कौन से मकां में रहता?
प्रतिबिम्ब को चेहरा मान बैठे
आईने के हर पहलू को पहचान बैठे
हर भाव हर आहट को जान बैठे
रिश्तों की बागडोरी को बाँध बैठे
वो निष्काम, निर्दोष हर पल तुझे देखता रहता
तू कौन से मकां में रहता?
Comments
Post a Comment