स्वाधीनता पूर्णविराम नहीं, निरन्तर इसकी सृष्टि है। यह नवजीवन की दृष्टि है।। कोई दिन भर का त्योहार नहीं, ये प्रतीकात्मक व्यवहार नहीं, गौरव-गान में सिंचित, ये कैसी आत्म-मुग्धी है? स्वाधीनता पूर्णविराम नहीं, निरन्तर इसकी सृष्टि है। यह नवजीवन की दृष्टि है।। आज भी पगडंडियों पे कुछ सुनहरे सपने सोते हैं, दो जून की रोटी को ना जाने कितने बिलखते-रोते हैं। जिस स्वराज्य के माथे पे बलिदान की अकथ कहानी है, घर कर चुका सदियों से जहाँ मानसिकता की गुलामी है। पंथ, जाति से बोध-गम्य मां भारती आज भी रक्तरंजित है, भ्रष्टाचार के दंश से कार्यालय देखो कलंकित है। इतिहास साक्षी है, भारत हौसलों की अनूठी कहानी है, विषम, विस्मयकारी परिस्थितियों में इसने कभी हार ना मानी है। दया, दानशीलता, प्रेम जिस देश की सांस्कृतिक विरासत है, धर्म, सत्य का मार्ग इसके रग-रग के वाहक है। अटल हिमालय सा सर ऊँचा तिरंगे ने आज ये ठानी है, पर-मानस के कालिख़ को ज्ञान के प्रकाश से मिटानी है। द्वेष-विद्वेष के गायक को आज मिले पूर्णाहूति, गंगा की वात्सल्यता से प्रेरित आओ गाएं प्रेम-स्तुति। खुला विचार धर्म-सम्मत व्यवहार, इस मुल्क की अद्म्य निशानी ह...