कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें,
कहने में क्या रखा है?
बात तो विश्वास पे आ अटकती है।
तुम्हारे-हमारे गुफ़्तगू से,
कुछ कहानियाँ बनेगी,
कुछ अफ़साने सजेंगे,
कुछ सच दिखाए जाएंगे,
कुछ झूठ बताए जाएंगे,
इस सिलसिले में,
हकीक़त और कल्पना के,
सारे फ़ासले मिटाये जाएंगे,
चलो अगर कल्पना की सैर पे ही चलना है,
तो बात करते हैं!
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