हाँ, चालाकी का हुनर मैंने भी सीख लिया,
ये बात और है कि कोई हुनर ज्यादा देर तक टिकती नहीं है,
जमाने के साथ पुरानी हो जाती है।
एक भ्रम तब भी था कि मैं सच्चा था,
एक भ्रम आज भी है कि मैं झूठा हूँ,
सच और झूठ इतने सस्ते मकां में नहीं रहते,
कि जिसे चंद शब्दों में ही पिरोया जा सके,
कई बार ज़िन्दगीयां बीत जाती है यह समझने में,
कि आख़िर में वह सवाल क्या था?
इल्ज़ाम मढ़ने से पहले यह सोच लेना,
कि कहीं तुमने अपने चरित्र को,
किसी आईने पे तो थोपा नहीं है,
शक्ल तो वही दिखती है,
जिस अंदाज़ में देखा जाता है।
कभी इर्ष्या भी अगर तुम्हें हो,
सामने वाले की उड़ान पे,
उसके पंख कतरने की बजाय,
कल्पना की उड़ान भर लेना,
कोई कल्पना कोरी नहीं होती,
गर हौसला हो उड़ान भरने की।
बात करने को बेचैन हो तो,
तो एक बात समझ लेना,
ज़्यादा बोलने वाला बेअक्ल जो जाता है,
भावनाओं की गहराई को समझने वालों के लिए,
आंख के आँसू ही काफ़ी हैं,
सच की गहराई में उतरने के लिए।
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