चमक दमक में उलझी दुनिया
ख़ुद से हर कदम भागती दुनिया
कौन देखा है अंदर का सच
जहाँ चकाचौंध में जागती दुनिया
इज्ज़त शोहरत की भूखी दुनिया
तमाशों में उलझी दुनिया
कौन सुनता है खामोशी को
जबकि शोरगुल में बहरी दुनिया
चंद कागज़ में बिकती दुनिया
प्रेम से नज़र चुराती दुनिया
अंतःकरण को कुंद कर
न्याय के गीत गुनगुनाती दुनिया
ऊंची आवाज में गाती दुनिया
आवाज का दाम लगाती दुनिया
प्रकृति को पैरों तले रौंद कर
महल-अट्टारी बनाती दुनिया
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