कोई चले समुंदर दान दिए
पूरे पथ पर उफान लिये
जब सच्चाई बेचा जाता है
वो सच ही कहाँ रह पाता है
ये सच का भला कैसा पक्ष है
सही-गलत का द्वन्द क्या सच है
जहाँ विरोध मौन हो जाता है
जीवन सहिष्णु बन जाता है
देखो पक्ष-विपक्ष की सभाएँ वो
जहाँ वाणी में कटुताएँ हो
वो क्या सत्य को जिएगा
जिसमें पुर्वाग्रह से बनी असंवेदनाएँ हो
वो मनुष्य ही कहाँ बिना अनुभूति के
वो समाज भला कहाँ बिना सहानुभूति के
जो स्थितिप्रज्ञता को पा जाता है
जीवन संगीत हो जाता है
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