देखने की ज़िद है तुम्हें
आँखें मिली है देखने को
पर ये भी कोई बात हुई
अपनी ही परछाई देखते रहते हो
कुछ नया कुछ अलग
देख पाया क्या तुमने
मालूम होता है तुम्हारी आँखें
शदियों से वही कहानी दुहरा रही है
रहने भी दो
देखने की ज़िद ना करो
देखना ही है
तो ख़ुद से दूर हो जाओ
इतनी दूर कि ख़ुद की परछाई ही ना पड़े
वो दिन रौशनी दिखाई पड़ेगी
अभी तो हर तरफ तुम्हारा ही साया है
और तुम ख़ुद को ही बोझ की तरह ढ़ोये जा रहे हो
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