सुना था माजिद मजीदी के बारे में कि वो एक उम्दा फ़िल्म निर्देशक हैं पर उनके फिल्मों को देखकर ऐसा लगा मानो एक उम्दा साहित्य, एक ज़िन्दा दर्शन। उन्होंने द सांग्स ऑफ स्पैरो से मानव मूल्यों के पतन के प्रति सचेत किया, एक गांव की सादगी को ज़िन्दा करते नज़र आते हैं। जीवन की अर्थहीनता को भी दर्शाते हैं, वहीं द चिल्ड्रेन ऑफ हैवेन से उन्होंने नन्हें से कदमों में पंखों की उड़ान डाल दी है। वो बहन के लिए प्यार, एक जोड़े जूतों के लिए इतनी लम्बी दौड़ और थर्ड आने की चाहत ताकि वो एक जोड़े जुते मिल जाएं, पर नसीब को मंजूर कुछ और ही होता है। दौड़ में प्रथम आने से उसका सपना पुरा नहीं हुआ, और अपनी बहन की आंखों में लाचारी देख कर निराश हो जाता है। कभी कभी रेस में प्रथम आने के बाद भी कितना कुछ हम हार जाते हैं? हम ज़िन्दगी की रेस में दौड़ते हैं, प्रथम आना चाहते हैं। पर हम भूल जाते हैं कि ज़िन्दगी भी हमारे साथ एक खेल खेलती है। और ये एहसास भी नहीं होता कि खेल का हिस्सा कब बन गए हम। शायद जन्म के साथ ही। हर कोई जितना चाहता है बिना किसी क़ीमत के। बिना ये जाने कि कोई तो हारता होगा हमारे इस जीत पे। दूसरों को हराना भी कोई जीत जैसा है भला। अली जीतना नहीं चाहता है उसे तो अपनी बहन के लिए जूते चाहिए, और अंततः वो अपने मक़सद में कामयाब होते होते रह जाता है। वो जीतता है पर हार भी जाता है। कुछ हमारी ज़िन्दगी की तरह जहां हमें कई बार अपने उम्मीद से ज्यादा चीजें मिल जाती है, पर वो नहीं मिलती जिसके लिए हम समर्पण दिखाते है। ज़िन्दगी कोई फॉर्मूले का नाम नहीं जिसे याद कर लिया जाये। यहां हर फॉर्मूले का अंत बिना किसी उत्तर के होता है। हमारे उत्तर के सामने कई प्रश्न हैं, जिनका समाधान पाते पाते पूरी ज़िन्दगी निकल जायेगी। कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिसका उत्तर हमसे हमारी ज़िन्दगी छीन लेती है। वो प्रश्न बने रहने से जीवन में कुछ दिलचस्पी जो बनी रहती है। ईरान की पृष्ठभूमि में बनी ये फिल्में जिसका कोई नायक और नायिका नहीं है। बस हम और आप क़िरदार में है और ज़िन्दगी रंगमंच है। उम्दा कहानी और सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिये शब्द भी कम पड़ जाएंगे! और हम भारतीय अभी भी सुपरहीरो की तलाश में हैं, जो सबकुछ ठीक कर देता है! हमें हॉलीवुड की चकाचौंध पसंद है पर आज भी हमारा भारत गांवों में बसता है।
पढ़ता हूँ हर एक दिन एक ही पन्ना, हर दिन हज़ार ये मालूम पड़ते हैं। जबसे होश संभाला है एक ही पन्ना सवांरते आया हूँ, लोग इसे ज़िन्दगी कहते हैं। इसपे लिखे हर एक लब्ज़ जो मेरे मालूम पड़ते हैं, ना जाने कितने जुबां पे चढ़े होंगे। आज हम भी कुछ पल के लिए ही सही इसके सारथी हैं, जाने से पहले कुछ रंग मेरा भी इसपे चढ़ जाए, बस इसीलिए एक ही पन्ना बार बार पलटता रहता हूँ। हर कोई अनजाने किताब की तलाश में बाहर निकलता है, जिसका हर एक पन्ना वो ख़ुद है। जब ख़ुद के रंग को समझ ही ना पाया, तो भला इंद्रधनुषी किताब के क्या मायने हैं? अस्तित्व में ना जाने कितने पन्ने बिखरे पड़े हैं, बस एक से ही अवगत हो जाऊँ, उसके हर एक शब्द को चुनता जाऊँ, कुछ पल के लिये सही, पिरोता जाऊँ एक माला ज़िन्दगी का।
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