इतना डरा हुआ रहता है मन
शायद ख़ुद में दुसरेपन का एहसास है
फ़िक्र रहती है अनजाने का
भला कौन सी मंज़िल की तलाश है
कौन से सपने अपने हैं
किसपे भला ऐतबार है
रहबर तो कितने हैं यहां पे
कोई इन्तहां पे मिले वो साथी कहाँ है
उदास सी आंखों को आयने में देखा है हमनें
इन नज़रों पे आख़िर इतना भरोसा क्यों है
कितने गीत हवाओं में शोरगुल सा तैर रहे हैं
कोई बोध सा मन को छू जाये वो सरगम कहाँ है
शब्दों के उलझन को मैंने समझ का नाम दिया है
आंशु की भाषा में जो निश्चल प्रेम उभर आये
वो निर्दोष सी आँखें आज कहाँ है
दिखाने का जुनून इस कदर सवार है हममें
बस 'ख़ुद' ही इन काफ़िलों में दिख जाये
'ख़ुदा' मिले या ना मिले
किसे भला उसका इंतज़ार है
रास्तों पे फ़ूल सी हसरतें तो ख़ूब सजाए हैं हमनें
बिना पत्थर के जो कोई ताज बन जाये
ऐसा प्रेमी कहाँ है
कितने बेदाग से चहरे हैं इन शाखों पे
कोई चाँद सा दागी दिख जाये
वो प्यार कहाँ है
शोहरत का कफ़न ओढ़े ना जाने कितने दफन हो गये
कोई ज़िन्दा सच बता जाये वो कवि कहाँ है
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