कहने को कई बात है पर जज़्बात के आगे झुक जाता हूँ,
ज़िन्दगी के बेमुक़म्मल रास्ते को अपनाता जाता हूँ।
पहर दो पहर घड़ी दो घड़ी बैठता हूँ उस दरख़्त के नीचे,
जिसके दामन में जीवन सरीखी संगीत झूमती है!
सच्ची बातें बेज़ुबां ही होती है,
जब सहजता से डाली डाली को निहारता हूँ।
सोचता हूँ गर धरा पे सिर्फ़ पेड़ ही होते,
तो क्या उनका भी कोई बाज़ार होता?
जो बिना शर्त देना जानता हो,
उसे खरीदने को शेष क्या बचा?
मालूम होता है सच और झूठ के दायरे तो हमने बनाये हैं,
जीवन-मृत्यु के मापदंड भी हमने अपनाए हैं,
उस पेड़ के टूटते पत्ते को देखता हूँ,
उसका ख़ुद से बिछड़ना भी एक निर्माण की भाषा है।
उसका निस्वार्थ समर्पण ही जीवन संगीत है!
ज़िन्दगी के बेमुक़म्मल रास्ते को अपनाता जाता हूँ।
पहर दो पहर घड़ी दो घड़ी बैठता हूँ उस दरख़्त के नीचे,
जिसके दामन में जीवन सरीखी संगीत झूमती है!
सच्ची बातें बेज़ुबां ही होती है,
जब सहजता से डाली डाली को निहारता हूँ।
सोचता हूँ गर धरा पे सिर्फ़ पेड़ ही होते,
तो क्या उनका भी कोई बाज़ार होता?
जो बिना शर्त देना जानता हो,
उसे खरीदने को शेष क्या बचा?
मालूम होता है सच और झूठ के दायरे तो हमने बनाये हैं,
जीवन-मृत्यु के मापदंड भी हमने अपनाए हैं,
उस पेड़ के टूटते पत्ते को देखता हूँ,
उसका ख़ुद से बिछड़ना भी एक निर्माण की भाषा है।
उसका निस्वार्थ समर्पण ही जीवन संगीत है!
Nice words...
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