इतनी अभिलाषाएं इतनी आकांक्षाओं पे समर्पण कि बस नशे में निकल गया था पंख की खोज में,
पर खोजने को तो भारत निकला था एक भद्र जन,
पर मिल गया अमेरिका।
हर खोज की यही कहानी है,
हर सपने की यही निशानी है,
जिसे हम खोजते रहते थे वो मृगमरीचिका निकली,
पर जो मिला उसकी कभी अभिलाषा ना थी,
पर वही जीवन था! सरल और परिलक्षित!
हमने अक़्सर ख़ुद को भूत के झरोखे से देखा है,
या भविष्य के कल्पनाओं में खोया है,
वर्तमान को हमनें ज़िन्दा निगल लिया है।
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