मेरी दोस्ती के क़ाबिल जो हो गए हो तुम,
इस काबिलियत से बेहतर होगा तुम दुश्मन के क़ाबिल हो जाओ।
तेरी वाह सुनकर मैं आत्ममुग्धि की मौत नहीं मरना चाहता।
मुझे उस रावण की जरूरत है जिससे राम के भी शौर्य में चार चाँद लग जाता है।
जिसके जीवन में शत्रु ना हो वो जीया ही कहाँ है स्वच्छन्दता से।
मानो इस जगत में कोई रोशनी के तेज से अन्धा हो गया हो।
उजाले की चाह ना हुआ करती गर रात गहरी नींद में निपट लेता।
इस काबिलियत से बेहतर होगा तुम दुश्मन के क़ाबिल हो जाओ।
तेरी वाह सुनकर मैं आत्ममुग्धि की मौत नहीं मरना चाहता।
मुझे उस रावण की जरूरत है जिससे राम के भी शौर्य में चार चाँद लग जाता है।
जिसके जीवन में शत्रु ना हो वो जीया ही कहाँ है स्वच्छन्दता से।
मानो इस जगत में कोई रोशनी के तेज से अन्धा हो गया हो।
उजाले की चाह ना हुआ करती गर रात गहरी नींद में निपट लेता।
Comments
Post a Comment